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  • 15 Mar 2025 निबंध लेखन निबंध

    दिवस- 12: "धानक खेत में कुरथी आ, कुरथी खेत में धान"। (100 अंक)

    परिचय: मैथिली कहावत "धानक खेत में कुरथी आ, कुरथी खेत में धान" का शाब्दिक अर्थ है: "धान के खेत में कुल्थी और अरहर के खेत में धान।"

    यह कहावत चीज़ों को उनके सही स्थान पर रखने के महत्त्व पर ज़ोर देती है। जिस तरह प्रत्येक फसल के लिये इष्टतम विकास के लिये अपना उपयुक्त क्षेत्र होता है, उसी तरह जीवन का हर पहलू - चाहे वह सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक या नैतिक हो - उचित रूप से संरचित और स्थित होने पर फलता-फूलता है। यह उस अव्यवस्था और अप्रभाविता को दर्शाता है जो तब उत्पन्न होती है जब वस्तुएँ अनुचित स्थान पर होती हैं या अपने अनुकूल वातावरण से बाहर होती हैं। मैथिली संस्कृति में रचित यह ज्ञान इतिहास, राजनीति, अर्थशास्त्र, पर्यावरण, दर्शन, सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों सहित विभिन्न क्षेत्रों में एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में कार्य करता है।

    मुख्य भाग:

    ऐतिहासिक पहलू:

    • प्राचीन सभ्यताएँ संगठित सामाजिक ढाँचे के चलते समृद्ध हुईं, लेकिन अव्यवस्था फैलते ही उनका पतन हो गया।
    • सिंधु घाटी सभ्यता के सुनियोजित शहर व्यवस्थित संगठन के मूल्य को दर्शाते हैं।
    • रोम जैसे महान साम्राज्यों के पतन का कारण आंतरिक अव्यवस्था और कुप्रबंधन को माना जा सकता है।
    • कृषि समाज ऐतिहासिक रूप से खेती में व्यवस्था को महत्त्व देते थे तथा फसलों के स्थान पर अनुकूलतम उपज सुनिश्चित करते थे।
    • यह कहावत उस ऐतिहासिक सबक को पुष्ट करती है कि अनुशासन और व्यवस्था से ही प्रगति कायम रहती है।

    राजनीतिक पहलू:

    • जिस प्रकार फसलों की उचित वृद्धि के लिये उन्हें सही खेतों में रोपना आवश्यक है, उसी प्रकार सुशासन के लिये स्थापित कानूनों का पालन अनिवार्य होता है।
    • भारतीय लोकतांत्रिक संरचना शक्तियों के पृथक्करण पर ज़ोर देती है तथा यह सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक संस्था अपने क्षेत्र में कार्य करे।
    • इतिहास ने दर्शाया है कि राजनीतिक क्रांतियाँ तभी सफल होती हैं जब वे रणनीतिक क्रम और योजना का पालन करती हैं।
    • यह कहावत इस विचार को रेखांकित करती है कि गलत राजनीतिक व्यवस्था शासन की विफलता का कारण बन सकती है।

    लौकिक पहलू:

    • यद्यपि समाज विकसित होता रहता है, परंतु व्यवस्था का मूल सिद्धांत समय के साथ अपरिवर्तित रहता है।
    • हर युग में सफल सभ्यताओं ने अपनी प्रणालियों में अनुशासन और संरचना को कायम रखा है।
    • कालातीत परंपराएँ, जब विकसित होते संदर्भों में उचित रूप से रखी जाती हैं, तो सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करती हैं।
    • सामाजिक प्रगति की स्वाभाविक लय को बाधित करने से प्रायः अराजकता और प्रतिगमन उत्पन्न होता है
    • यह कहावत हमें याद दिलाती है कि समय के साथ सामंजस्य बनाए रखने से सतत् विकास सुनिश्चित होता है

    समकालीन पहलू:

    • आधुनिक संगठन और सरकारें तब संघर्ष करती हैं जब वे व्यवस्था तथा संरचना का पालन करने में विफल हो जाती हैं
    • नौकरशाही की अकुशलताएँ तब उत्पन्न होती हैं जब भूमिकाएँ और ज़िम्मेदारियाँ उचित रूप से निर्धारित नहीं की जातीं।
    • यह कहावत सुशासन के मूल सिद्धांतों के अनुरूप है और नियम-आधारित प्रशासन के महत्त्व को रेखांकित करती है।
    • सफल स्टार्टअप और व्यवसाय तब सफल होते हैं जब वे टीमों के भीतर प्रभावी ढंग से भूमिकाएँ आवंटित करते हैं।
    • यह कहावत आज भी प्रासंगिक है तथा किसी भी व्यवस्था में अव्यवस्था के खतरों के प्रति आगाह करती है।

    नैतिक पहलू:

    • नैतिक आचरण के लिये यह आवश्यक है कि व्यक्ति समाज में सीमाओं और भूमिकाओं का सम्मान करे।
    • व्यावसायिक और व्यक्तिगत जीवन में ईमानदारी व्यक्ति के उचित स्थान की समझ से उत्पन्न होती है।
    • नैतिक सीमाओं का उल्लंघन भ्रष्टाचार, संघर्ष और अविश्वास को उत्पन्न करता है।
    • व्यक्तिगत स्थान और ज़िम्मेदारियों का सम्मान करने से सामाजिक सद्भाव सुनिश्चित होता है।
    • कहावत सिखाती है कि नैतिक और आचार-संरचनाओं का पालन करने से स्थिरता एवं प्रगति होती है।

    आर्थिक पहलू:

    • आर्थिक विकास तब फलता-फूलता है जब उद्योगों, नीतियों और संसाधनों का उचित आवंटन किया जाता है।
    • खराब वित्तीय नियोजन से आर्थिक अस्थिरता उत्पन्न होती है, जो गलत जगह पर उगाई गई फसलों की अव्यवस्था को दर्शाती है।
    • भारत के नियोजित आर्थिक सुधार संसाधनों के रणनीतिक आवंटन के प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं।
    • किसी देश के कार्यबल को कुशलतापूर्वक ऐसे क्षेत्रों में नियुक्त किया जाना चाहिये जहाँ उनकी क्षमता अधिकतम हो।
    • यह कहावत आर्थिक कुप्रबंधन के प्रति चेतावनी देती है जो सामाजिक खुशहाली को बाधित करती है।

    पर्यावरणीय पहलू:

    • सतत् कृषि पद्धतियों में फसलों को उपयुक्त भूमि पर उगाने के सिद्धांत का पालन किया जाता है।
    • प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान उत्पन्न होने पर मृदा क्षरण और जलवायु संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
    • बिना योजना के वनों की कटाई और शहरी विस्तार से पारिस्थितिक असंतुलन उत्पन्न होता है।
    • यह कहावत स्थायित्व के लिये पर्यावरणीय व्यवस्था बनाए रखने की आवश्यकता पर बल देती है।
    • वनरोपण जैसे संरक्षण प्रयास, संसाधनों के उचित स्थान-निर्धारण की बुद्धिमत्ता के अनुरूप हैं।

    दार्शनिक पहलू:

    • कई दार्शनिक परंपराएँ जीवन में संतुलन के महत्त्व पर ज़ोर देती हैं।
    • भारतीय दर्शन में धर्म की अवधारणा उचित स्थान और कर्त्तव्य के विचार को प्रतिबिंबित करती है।
    • ब्रह्मांडीय व्यवस्था, जैसा कि कई धार्मिक विश्वासों में देखा जाता है, इस कहावत के सार के साथ प्रतिध्वनित होती है।
    • कन्फ्यूशियस और अरस्तू जैसे दार्शनिकों ने सुपरिभाषित भूमिकाओं के माध्यम से सामाजिक सद्भाव पर ज़ोर दिया।
    • यह कहावत आत्म-जागरूकता और ज़िम्मेदार जीवन जीने के लिये एक रूपक के रूप में कार्य करती है।

    धार्मिक पहलू:

    • प्रत्येक धर्म ईश्वरीय नियमों और नैतिक संरचनाओं के पालन का समर्थन करता है
    • धार्मिक शास्त्र अपने पर्यावरण और समुदाय के साथ सद्भाव से रहने के महत्त्व पर प्रकाश डालते हैं।
    • आध्यात्मिक शिक्षाओं से भटकने से सामाजिक कलह और व्यक्तिगत कष्ट होता है।
    • यह कहावत मानव जीवन में धर्म के सिद्धांत से मिलती है।

    अंतर्राष्ट्रीय संबंध पहलू:

    • क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान राष्ट्रों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व सुनिश्चित करता है।
    • जब राष्ट्र संधियों और समझौतों का पालन करते हैं तो राजनयिक संबंध फलते-फूलते हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का उल्लंघन संघर्षों को जन्म देता है, जैसा कि सीमा विवादों में देखा गया है।
    • संयुक्त राष्ट्र देशों के बीच व्यवस्था और संरचित सहयोग के सिद्धांतों पर काम करता है।
    • यह कहावत वैश्विक शांति के लिये अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन करने के महत्त्व का प्रतीक है।

    निष्कर्ष: मैथिली कहावत "धानक खेत में कुरथी आ, कुरथी खेत में धान" अपनी कृषि जड़ों से आगे बढ़कर जीवन के विभिन्न पहलुओं में व्यवस्था और उचित स्थान की आवश्यकता पर गहन शिक्षा प्रदान करती है। चाहे इतिहास हो, राजनीति हो, नैतिकता हो, अर्थशास्त्र हो या अंतर्राष्ट्रीय संबंध, संतुलन और अनुशासन बनाए रखने की बुद्धि अमूल्य है। इन सिद्धांतों का सम्मान करके, व्यक्ति और समाज सद्भाव, स्थिरता एवं प्रगति को बढ़ावा दे सकते हैं। इस प्रकार, यह कहावत व्यक्तिगत, सामाजिक और वैश्विक क्षेत्रों में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये एक कालातीत मार्गदर्शक के रूप में कार्य करती है।

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